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हिन्दी का दर्द

प्रेरणा
प्रेरणा
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मैं हिन्दी …..
देश की धड़कन ,
सदियों से रच रही थी ,,,,,
तुम्हारा इतिहास ….
समृद्ध शब्दकोश बन ,
साहित्यकारों का विश्वास ,
संस्कारों का आधार ,
पर ………..आज ….
मैं अपना ….
अस्तित्व निरंतर ..
गिरते देख रही हूँ ,
आह …. लोगो के ….
अंग्रेजी मोह में ,
अपने शब्दों को …
निरंतर घुटते ,मिटते…
देख रही हूँ ,,,
मौखिक ‘औ’ लिखित ,
मेरी मीठी शब्दावली ……
नए युग में ……
अपनी शालीनता ….
अब खो रही है ,
अपने अंगों को ढाँपने के लिए,
मैली कुचैली तार तार होती…….
मेरी झिंगोली ,,,,
अपनी हालत पर रो रही है ,
मेरी आत्मा को…
छलनी करके ,
मुझे हाय… जाने क्यों …
अंग्रेजी जामा पहना दिया है ,,
इन विदेशी शब्दों ने …मेरा ,
स्वरूप खंडित कर मुझे ….
जीते जी
अंगारों में झोंक दिया है…
मैं सिसकती रहती हूँ ,
हर क्षेत्र में मुझे ….
पछाड़ा गया …
मेरे हिंद पर शाशन करने वालो ने ,
मेरे लोगों को …….
मानसिक बीमार बना दिया ,
उस गुलामी में आज भी….
सब जकड़े हुए हैं …
आधुनिकता ही होड़ में …
मुझे ठुकरा रहे हैं ,
विदेशी षड्यंत्र से अनजान ,
आम आदमी मुझसे …,
कतराने लगा है …
उसने मेरे वजूद को
तोड़ मरोड़ कर ,
अंग्रेज़ी में ढाल दिया है ,
और मैं ….. असहाय सी ..
मूक वेदनाओं में घिरी …
सिसकती हुई ….बाट निहार रही हूँ ,
अपनी दम्भित इच्छाओं में ही ,
सुगबुगा रही हूँ…..
इस पर भी …,क्या तुम्हे चैन नही आया
जो तुमने मेरी पुण्यतिथि को…
हिन्दी दिवस के रूप में मनाया
तुमने मुझको हिन्दी दिवस की…
बेडी में जकड दिया,
अपने भारतीय होने का स्वांग ,
तुम सबने रचना सीख लिया !!
पूरे वर्ष ठुकराने पर
१४ सितंबर पर ही क्यों ….
मेरी महिमा का गुणगान और
मेरे इतिहास खंगालते तुम
मेरे लिए समारोह ,संगोष्ठियों
पर समय नष्ठ कर ….
मेरे स्वाभिमान को …
अभिशापित कर रहे हो ,
कभी कभी मुझे ,
तुम सब पर दया आती है ,
अपने भविष्य को देख …
मेरी रूह थरथराती है ,
काश …तुम आज भी ..
संभल जाते ….
….और अपने,
भारतीय होने का …
सम्मान बचा पाते !

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