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तुम क्यों हो धरा क़ी सखी
करती निरंतर उससे वफा
शायद ,,,,,,
तभी तो निष्ठुर बन
मान लेती उसकी हर बात
और ,,,,,,,फिर
छीन लेती हो ,,,,,
अनमोल सांसे ,,,,
अबोध शिशु क़ी ….
या ममता क़ी छाँव क़ी
इतनी निर्ममता क्यों ?
कैसे कर लेती हो …..
महज पल भर में ……
क्यों नहीं दिखता तुम्हे
दर्द और आँसुओं का ,,,,,
अंतहीन सैलाब ,,,,
या शायद ये तो हैं
तुम्हारे खेल का हिस्सा
पलो में अंत करती तुम ,,,,
जीवन का किस्सा ,,,,,
युगों से तूने
धरा का साथ चुन
क्या सकूं पा लिया ?
अब जरा ठहर् ,,,,
ए मौत ,,,,,,
आज बन जा
मेरी सखी …
क्योंकि तू तो है भोली
तुझे तो चाहिये
एक अटल प्रेरणा
जो तेरे नाम को
सँवारे युगों युगों तक
क्योंकि शायद सखी
तू अपना भला ,,,,
नहीं समझती ,,,,,
बस निश्छल सी
समय कठपुतली बन
लील जाती ….
मासूमो को भी ,,,,,,
एक बवंडर क़ी तरह ,,,,,
क्योंकि तेरे अंदर
सवेदनायें है ही नहीं ,,,,,
बस … अब और नहीं
तुझे अपना वर्चस्व
कायम करना होगा
आज ही नहीं
कालांतर तक
अडिग ,,,,
न्याय मूर्ति बन
नष्ट करना होगा ,,,
संवेदनहीन अपराधियों को
जो निडर होकर
विचरण कर रहे
इस धरा पर ,,,,,,,
बेखौफ ……
तेरा पद छीन कर
तुझे ललकार रहे …
आ अब जाग
ईश्वर क़ी पावन धरा
को अब तू संभाल
आ मेरी सखी आ
अपना नया इतिहास रच !
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