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तिरंगे की व्यथा

प्रेरणा
प्रेरणा
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मैं तिरंगा ,
भारत की शान ,
हाँ उसकी … आपकी ,
गौरवमयी पहचान ,
तीन रंगों का ,
मात्र कपड़ा नहीं ,,
मैं हूँ तिरंगा ,
समय चक्र लिए …
बना सैनिको का ,
रण अभिमान ,
रास्ट्र स्वतन्त्रता का ,
नहीं मात्र परिचायक ..
हूँ इसका ….
समय साक्ष्य ,
अपने भीतर …..
असंख्य विभस्त ,
रण गाथाएं छुपाए ,
लहराता हूँ ……
इठलाता हूँ …
सरहदों पर ,
और लालकिले की ,
बनकर पहचान ,
किन्तु ……..
वक़्त …….
हाँ वक़्त कभी मेरा था ….
आज है ……
शायद नहीं …..
भीतरी घात है ,
धर्म का अंधयुद्ध है ,
बाह्‌य घात प्रतिघात
कतर रहे हैं …..
मेरे स्वाभिमान को ,
इसीलिए आज मैं ,
गुमसुम हूँ …
भयभीत हूँ …
शायद ……
बेड़ियों में जकड़ा हूँ
निष्ठुर समय की ….
पदचाप सुन रहा हूँ ,
समय हाँ समय की ,
दिशा बदली ,,,,
नागरिक आस्था बदली ,
मात्र प्रतीक हूँ क्या ?
दो …….दिन ही ….
क्यों सम्मानित होता ?
अक्सर मेरी भावनाओ को
रौदा जाता ….
जलाया जाता …
उल्टा लटकाया जाता ,
कभी मान में ,
कभी अभिमान में ,
कभी गुणगान में ,
कभी रुदन में
कभी असंख्य …
बलिदानो में …
करता रहता हूँ
सदा अपने …..
अस्तित्व की तलाश !

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