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आगोश ….

प्रेरणा
प्रेरणा
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जीवन कारतूसों का खिलौना बना ,
समारोहों में गोलियाँ चलती अब दिखावे में !
लाशों के ढेर पर वोटों की उपलब्धियाँ ,
आज मानवता रोती श्मशान के आगोश में !!
विस्फोटों से माँ की आत्मा झुलस रही ,
क्यूँ यहाँ आतंकी अरमान सुलग गए ?
घोर कुत्सित मानसिक प्रवृतियाँ बढ़ रही ,
रोज लाखों मौत के आगोश में सो गए !!
भ्रष्टाचार के बढ़ते स्वाइन फ्लू से ,
अशोक के भारत की इमानदारी खो गयी !
मुफलिसी रुपी अंधड़ की चपेट में ,
लाखों बेटिया दहेज के आगोश में सो गयी !!
प्रकृति से अनैतिक खिलवाड़ से ,
मनुष्य पतन की ओर बढ़ रहा !
रिश्तों में बढ़ते वैर वैमनस्य से ,
अपनी परछाई के आगोश में डर रहा !!
लोकतंत्र की हिफाजत भूलकर ,
हिंसा तंत्र को आज सब अपना रहे !
न्याय अपेक्षा में बंद का आह्वान कर ,
महंगाई के आगोश में सभी त्रस्त हो रहे !!
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